आइये आज जानते हैं हाइड्रोजन बम का आविष्कार किसने किया था और कब हुआ अगर दुनिया के सबसे विनाशकारी हथियार की बात करें तो पहले स्थान पर थर्मोन्यूक्लियर यानी हाइड्रोजन बम ही आता है हालाकि अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन इसके परीक्षण साबित कर चुके हैं कि यह कुछ मिनटों में ही मानव सभ्यता और पृथ्वी के तमाम जीव जंतुओं के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह परमाणु बम से 1000 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। परमाणु की विध्वंसक लीला हम देख चुके हैं जब अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के दो शहरों में परमाणु बम गिराए थे तब दोनों शहर पूरी तरह से तबाह हो गए थे।
जापान के दोनों शहरों में आज भी परमाणु की तबाही के निशान देखे जा सकते हैं। जरा सोचिये अगर एक परमाणु बम पूरे शहर को तबाह कर सकता है तो इससे 1000 गुना ज्यादा विनाशकारी हाइड्रोजन बम कितनी तबाही मचा सकता है। ऐसे में आप भी इस खतरनाक बम के आविष्कार के बारे में जरुर जानना चाहते होंगे। आपको बता दे कि हाइड्रोजन और परमाणु बम की कार्यशैली अलग अलग हैं लेकिन दोनों एक जैही तबाही मचाते हैं। पिछले पोस्ट में हमने आपको परमाणु बम के आविष्कारक के साथ इसकी शुरुआत कैसे हुई इसके बारे में बताया था। आप साईट में सर्च करके उस पोस्ट को पढ़ सकते हैं।
हाइड्रोजन बम का आविष्कार किसने किया था
आपकी जानकारी के लिए बता दे विश्व के पहले हाइड्रोजन बम का आविष्कार हंगेरियन मूल के अमेरिकी सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक Edward Teller ने किया था। इन्ही के नेतृत्व में 1 नवंबर, 1952 में प्रशान्त महासागर में स्थित प्रवाल द्वीप समूह Enewetak के एक द्वीप पर इस बम का प्रथम परीक्षण किया गया था तथा इस परीक्षण का नाम Ivy Mike रखा गया था। इस तरह हाइड्रोजन बम का आविष्कार करने वाला अमेरिका पहला देश बन गया था।
हंगरी देश में साल 1908 में जन्मे एडवर्ड टेलर ने अपने विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई जर्मनी में की थी। इसके बाद वह साल 1935 में अमेरिका आ गए एडवर्ड के अमेरिका आने और रक्षा शोध और अनुसंधान से जुड़ने का प्रमुख कारण हंगरी देश में हुए कम्युनिस्ट आंदोलन और जर्मनी में हिटलर की नाजी सेना का उदय होना था। क्योंकि उस समय हिटलर की सेना यूरोप के देशों में एक के बाद एक कब्जा कर रही थी।
जिससे एडवर्ड भी काफी प्रभावित थे ऐसे में हिटलर की सेना को रोकने के लिए एडवर्ड परमाणु बम जैसे खतरनाक हथियार विकसित करने के समर्थक बन गए थे। जब अमेरिका के बाद सोवियत संघ ने अपना पहला परमाणु बम का परीक्षण कर लिया तो एडवर्ड ने अमेरिका के राष्ट्रपति को हाइड्रोजन बम परियोजना पर काम करने के लिए मनाया क्योंकि उस समय अमेरिका और सोवियत संघ (आज का रूस) एक दूसरे कड़े प्रतिद्विंदी माने जाते थे। राष्ट्रपति से स्वीकृति मिलने के बाद साल 1952 में दुनिया के पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया।
हाइड्रोजन बम क्या है
दरअसल हाइड्रोजन बम परमाणु बम की एक किस्म है जिसमें Deuterium और Tritium का इस्तेमाल किया जाता है। इस बम में तीन चरण में धमाके होते हैं जो मुख्य रिएक्टर को फटने में मदद करता है। इस मुख्य रिएक्टर के फटने के लिए 5 लाख डिग्री सेल्सियस या इससे भी अधिक गर्मी की जरूरत पड़ती है जो पहले दो धमाके से मिलती है। जब हाइड्रोजन बम पूरी तरह से विस्फोट करता है तो इसकी ऊर्जा सूर्य के तापमान के बराबर होती है।
इसके धमाके में इतनी ताकत होती है कि इसकी हवा ही किसी भी इंसान को कई किलोमीटर तक फेंक सकती है। अगर कोई भी व्यक्ति इसकी रोशनी को देख ले तो वह अंधा भी हो सकता है जिस द्वीप में अमेरिका ने इस बम का परीक्षण किया था उस द्वीप और आसपास के पूरे क्षेत्र में सभी प्रकार के जीवन समाप्त हो गया था।
हाइड्रोजन बम कौन कौन से देश के पास है
जैसा कि अब आपको पता चल गया होगा कि दुनिया के पहले हाइड्रोजन बम का आविष्कार अमेरिका ने किया था लेकिन इस परीक्षण के साथ ही विश्व के कई देशों में इसे बनाने की होड़ सी लग गयी थी। जैसे परमाणु बम के आविष्कार के बाद कई देशों ने इसका परीक्षण कर लिया था उसी तरह आज विश्व के कुछ सक्षम देशों ने थर्मोन्यूक्लियर बम का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। अधिकारिक तौर पर निम्नलिखित देशों के पास हाइड्रोजन बम है।
- अमेरिका
- ब्रिटेन
- चीन
- फ्रांस
- रूस
- भारत
- पाकिस्तान
- इजराइल
जहाँ तक हमारे देश की बात करें तो भारत ने साल 1998 में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था।
तो अब आप जान गए होंगे कि हाइड्रोजन बम का आविष्कार किसने किया था और कब हुआ वैसे देखा जाए तो परमाणु बम का प्रयोग किया जा चुका है लेकिन हाइड्रोजन बम को अभी किसी भी देश पर हमले के लिए उपयोग नहीं किया गया है। और उम्मीद करते हैं इसका उपयोग कभी न हो क्योंकि हम परमाणु बम की तबाही देख चुके हैं। जिसने जापान के दोनों शहर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। चूँकि हाइड्रोजन बम परमाणु बम से 1000 गुना ताकतवर है ऐसे में इसके प्रयोग से मानव जाति के साथ तमाम जीवन खतरे में आ सकता है।
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जो चीज नुकसान करती उस चीज को नही बनाना चाहिए।